Science Time (H) - 11/03/2022
साइंस टाइम' के इस अंक में चर्चा का विषय है - भविष्य का ईंधन - ग्रीन हाइड्रोजन। पिछले हफ़्ते ‘लाइवमिंट’ में एक लेख प्रकाशित हुआ - “Our Green Energy Policy Needs A Close Relook”। इसमें हरित हाइड्रोजन नीति और इसके प्रभावी कार्यान्वयन से संबद्ध चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है। जैसा कि हम सब जानते हैं कि भारत सरकार के विद्युत मंत्रालय ने हरित हाइड्रोजन नीति यानी Green Hydrogen Policy की घोषणा की है, जिसके अनुसार वर्ष 2030 तक 5 मिलियन टन प्रतिवर्ष हरित हाइड्रोजन उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है, जो देश में मौजूदा हाइड्रोजन की मांग से 80% अधिक है। सवाल उठता है कि क्या भविष्य के ईंधन के रूप में देखा जा रहा है - ग्रीन हाइड्रोजन? आखिर क्या है ये क्लीन ग्रीन हाइड्रोजन ? और ईंधन के रूप में इसके इस्तेमाल के क्या लाभ हैं ? हरित ऊर्जा हासिल करने की टेक्नोलॉजी क्या है और इस दिशा में किस प्रकार के प्रयास किये जा रहे हैं ? कैसे काम करता है हाइड्रोजन फ्यूल सेल ? हाइड्रोजन ईंधन से आटोमोबाइल सेक्टर में किस प्रकार की क्रांति आनेवाली है ? हाइड्रोजन ईंधन के भंडारण की राह में क्या-क्या-चुनौतियां हैं और इसके समाधान क्या हैं ? इन तमाम सवालों के विश्वसनीय जवाब जानने के लिये देखिये 'साइंस टाइम' का ये अंक - भविष्य का ईंधन - ग्रीन हाइड्रोजन। इस विषय पर जिन विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे हैं, वे हैं - आई.आई.टी. कानपुर के यांत्रिकी अभियांत्रिकी विभागाध्यक्ष प्रो. अविनाश कुमार अग्रवाल और NCL के निदेशक डॉ. आशीष लेले।